life a journey and zindagi जिंदगी: एक सफ़रनामा


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pअपनी बातbr“ज़िंदगी तू मोम सी है, जितनी पिघलती है उतनी ही जलती है।brऊपर लिखे मेरे चंद अल्फाज़ आपकी और मेरी मोम सी ज़िंदगी का फलसफाई किस्सा बयां करता है।brअकसर मैं सोचा करता हूँ कि अगर ज़िंदगी से प्रेरित औरbrमुतास्सिर होकर कुछ कभी लिखूँ तो उसे क्या नाम दूँ, उसे क्या अंजाम दूँ और फिर सोचता हूँ की जो मैं जिंदगी के बारे में लिखना चाहता हूँ वो तो हम सब लोगों के वजूद और जीने का हिस्सा है।brइस किताब की नज्मे मैंने लिखी नहीं, ज़िंदगी ने खुद जीकर मुझसे लिखाई हैं और लिखते लिखते कभी कभी ऐसा भी एहसास होता था की मैं जिंदगी को जी रहा हूँ या ज़िंदगी मुझे जी रही हैbrज़िंदगी हसीन भी और हसीना भी, तस्वीर भी है और आईना भी, ज़िंदगी अल्फाज़ भी और मायना भी, और कुछ खोजती मुआयना भी।brइतने पहलू है इस ज़िंदगी के कि कभी पानी से सर्द होकर बर्फ की शक्ल इखतियार कर लेती है और फिर मौसम के गरम होते ही बर्फ पिघलकर अपने वजूद को उसी पानी में मिला लेती हैp