Umeedye Sahar उम्मीदे सहर


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pमेरा नाम मदन मोहन शुक्ल है। मैं 2 अक्तूबर 1939 को बनारस, यू.पी. में पैदा हुआ था। 18 साल की उम्र में जब B.H.U. का B.Sc. का स्टूडेंट था, ग़ज़ल लिखना शुरू किया था। 21 साल की उम्र में M.Sc. किया। P.HD. करने के दौरान ग़ज़ल लिखना बंद सा हो गया। फिर उसके बाद नॉर्वे में Post Doctorate और 1970 में and Research में लगा रहा। मैं UNICAMP State University of companies of S.P. का Professor of Physics रहा हूँ। मैंने India, U.S.A., Europe और अंत में Brazil South America में Physics की सेवा की। सन् 2000 से Physics छोड़ कर दिन-रात अपने आपको शेरोशायरी में लगा दिया।brकुछ कारणवश मैं कई वर्षों तक भारत न आ सका सारे मित्रों और कई रिश्तेदारों से विनती की कि मेरी ग़ज़ल, नज़्म, किताबें छपवा दें, पर कुछ नतीजा नहीं निकला। कुछ साल पहले एक पाकिस्तानी नागरिक जो Campinas में study के लिए आया था और मेरा अच्छा दोस्त बन गया था, उसकी मदद से मेरी दो किताबें पाकिस्तान में उर्दू में छप सकी थीं। पहली किताब हसरत की नज़र और दूसरी यह उम्मीदे - सहर ।brपर वहाँ छपवाने का कोई नतीजा न दिखा। पब्लिशर के ऑफिस में किताबें कैद थीं। इस साल के शुरू में इंडिया खासतौर से रीवा आया, अपनी बड़ी बहन उर्मिला मिश्रा से मिलने। उनके बेटे यानी मेरे भांजे श्री रामलाल मिश्र ने मेरी मदद करने का वादा किया। इस तरह मैं अपनी दोनों किताबें हिन्दी जानने वालों के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। वैसे भी हिन्दी स्क्रिप्ट में ही लिखता हूँ, मुझे urdu script का बहुत अच्छा ज्ञान नहीं है।p