Dekho Bhopal


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माँ.. केवल एक शब्द मात्र नहीं है। अनगिनत भवनाओं को अपने अन्दर समेटा हुआ यह शब्द दुनिया के सभी रिश्तों से बढ़कर है। माँ के पास होने का अहसास भर ही सुकून दे देता है, तभी तो कोई सुई चुभने का छोटा दर्द हो या जान जाने का जोखिम माँ शब्द जुबां पर आ ही जाता है। कहते है माँ के क़दमों में जन्नत है.. और मैं मानता हूँ कि धरती पर माँ का साथ होना ही इस दुनिया में आपकी जन्नत है। एक माँ जब अपने हाथ उठा कर अपने बच्चों के लिए दुआ मांगती है तो वो दुआ आसमान का सीना चीरते हुए अर्श तक पहुंचती है। मुझे याद है मेरे स्वर्गीय पिता जी के पास जब लोग अपनी परेशानियाँ लेकर आते थे तो उनका पहला सवाल यही होता था के क्या तुम अपनी माँ की खिदमत करते हो मैंने जबसे होश संभाला अपने पिता को मेरी दादी के लिए समर्पित देखा, और उनकी इसी शिक्षा से हमने सीखा कि ज़िन्दगी में माँ का क्या दर्जा होना चाहिए। देखो भोपाल पत्रिका का यह अंक माँ पर आधारित है। यूँ तो माँ की भवनाओं को शब्दों में लिखना नामुमकिन है.. लेकिन हमने इस अंक में एक छोटी सी कोशिश की है माँ से जुड़े कुछ लेख, कुछ सच, कुछ भवनाओं को आप तक पहुँचाने की। इस अंक की कवर स्टोरी में पढ़िए भोपाल में रह रही कुछ माँओं के बारे में, उनके जीवन के कठिन संघर्ष और उनके हौसले के बारे में। देखो भोपाल पत्रिका का यह अंक मैं अपनी माँ को समर्पित करना चाहता हूँ और साथ ही दुनिया की हर उस माँ को जो अपना पूरा जीवन अपने परिवार विशेष कर अपने बच्चों के लिए समर्पित कर देती है।