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विज्ञान-प्रौद्योगिकी-मेडिकल की उन्नत शिक्षा और विश्वस्तरीय अनुसंधान समय की मांग है। इस नब्ज को पहचानकर अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, ब्रिटेन, इटली, इजराइल और ब्रिटेन जैसे देश दुनियाभर में सिक्का जमाए हुए हैं। उनकी समृद्धि में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। इनके आगे भारत कहीं टिकता नहीं दिख रहा, जबकि एक हजार विश्वविद्यालयों और आईआईटी, आईआईएम जैसे प्रीमियर संस्थानों के साथ शिक्षा के क्षेत्र में तीसरा बड़ा सुपर पॉवर है। इस प्रतिस्पर्धा में मजबूती से कदम रखने के लिए निर्मला सीतारमण ने पिछले बजट में स्टडी इन इण्डिया और राष्ट्रीय अनुसंधान फाउण्डेशन की स्थापना को ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में प्रस्तुत किया था। अब नया बजट सामने है, लेकिन ये दोनों ही लक्ष्य के अनुरूप आकार नहीं ले पाए हैं। हालांकि प्रयास किए जाएं तो यह भारत को फाइव ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने में कैश क्रॉप का काम कर सकते हैं। कैश क्रॉप इसलिए कि दुनिया में शिक्षा का बाजार साल-दर-साल विस्तार ले रहा है। इसे अपने हित में कैश कराने और विदेशी मुद्रा लाने में ये योजनाएं बड़ा साधन बन सकती हैं। इस विवेचना को आगे बढ़ाते हुए इस बार के अंक में बजट से अपेक्षाओं और मौजूदा स्थिति पर एक नजर-