हिंदी उपन्यास देवभूमि यथार्थ और कल्पना मिश्रित चार इंजीनियर युवकों और चार इंजीनियर युवतियों की भोपाल और सॉता क्लारा यू.एस.ए. की पृष्ठभूमि पर लिखा उपन्यास है। एक सीमित औसत घर का बालक किस तरह एक सफल इंजीनियर बनता है, उसका काफी हद तक यथार्थवादी चित्रण है। कहानी के साथ एम्स नई दिल्ली में पढ़ते दो सॉता क्लारा से आए मेडिकल छात्रों और भोपाल के मंत्री की बेटी मेडिकल छात्रा की और एक गृहणी अदिति की आकाशीय उन्नति की उपकहानियाँ जुड़ीं हुई है। कहानी विभाजन से पूर्व हरिद्वार में रहते नवयुवक पँडित देवाँग से आरम्भ होती है। उसकी शादी बनारस की अंग्रेज़ी और इतिहास में स्नातक सुन्दर, लम्बोतरी अदिति से होती है। देवाँग के यहाँ सिन्ध से नियमित कर्म क्रिया के लिए आने वाले यजमानों की भारत विभाजन के बाद कमी हो जाती है। देवाँग शर्मा पहले देवप्रयाग और फिर वापस हरिद्वार पलायन करते हैं। एक सिन्धी बादाम का व्यापारी ईशान उसे समाज की पंडिताई के लिए उनके परिवार के देवप्रयाग में जन्मे नील और भूमिजा के साथ सॉता क्लारा ले जाता है। स्पेनिश मि. जेम्स विलियम जो शासक दल का प्रशासक है, उसकी देवाँग परिवार से घनिष्ठता और ईशान की सहायता अदिति को एक सफल उद्यमी बनाने में सहयोग प्रदान करती है। स्पेनिश लुमिनोसा हर तरह से विलियम के बेटे मार्को पर डोरे डालती है पर स्पेनिश संस्कृति भारतीय इंजनीयर दिव्यानी के आगे सफल नहीं हो पाती। उपन्यास में कई सच्ची विभाजन की दर्दनाक घटनाएँ और विभाजन के बाद तकनीकी सर्विस की सिविल सर्विस के आगे व्यथा, छोटे व मध्यम उद्योग लगाने की कठिनाइयाँ, राजनीतिक व्यवस्था की खामियाँ दर्शायी गई है। लेखक ने कुछ सुझाव भी सुधारों हेतु दिए हैं। भोपाल के देवस्य और सांता क्लारा की भूमिजा के प्रेम और विवाह कर देवभूमि बनकर यूरोप, अमेरिका, 15 ज्योतिर्लिंगों और अन्य महत्वपूर्ण शिव मंदिरों और स्थलों का भ्रमण कर संक्षिप्त विवरण है। भारत मे यथार्थ में और हुस्टन में काल्पनिक फैक्ट्री विवरण भी भारत में कठिनाइयों के साथ सम्मिलित है। भारतीय होकर कुछ विवेचना और कुछ सुझाव भी उपन्यास के अंग हैं। लेखक 74 वर्ष का एक सफल इंजीनियर, एक सफल उद्यमी और सीमित कवि, गीतकार हैं। यह प्रथम प्रयास कैसा लगा उसकी प्रतिक्रिया का आकांक्षी हूँ।