Adhyatm 'Pratibha' अध्यात्म 'प्रतिभा'
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समय चक्र वृद्धि के साथ-साथ आयु वृद्धि स्वाभाविक है। आयु वृद्धि से समझ में आता है की जो अनुभव हमारे हैं वह अन्य किसी व्यक्ति के भी हो सकते हैं। परंतु लिखित रूप में सजीव न होने की वजह से किसी दूसरे के काम नहीं आते।
समय के साथ हमें अनुभूति हुई कि हमें अपने अनुभवों को किताब रूप में ढालना चाहिए जिससे मनुष्य मात्र का मार्गदर्शन उचित रूप से हो सके।
जीवन एक मार्गदर्शन है जो नित्य हमें एक नए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है बुद्धि और विवेक का प्रयोग कर हम अपने जीवन को उचित दिशा की ओर अग्रसर कर सकते हैं।
किताबें जीवन का दर्पण है इनमें हर व्यक्ति अपनी सोच एवं संस्कार देख सकता है। जीवन में घटित कुछ आकस्मिक घटनाओं ने मेरे जीवन को अध्यात्म की ओर मोड़ दिया।
एकांत, प्रकृति, योग, ध्यान एवं आध्यात्मिक पुस्तके, आध्यात्मिक वार्तालाप आदि ने मेरे जीवन में एक उचित स्थान बना लिया। योग साधना से मेरे मन में अध्यात्म उत्पन्न हुआ जिसे मैंने कलम के माध्यम से कागज पर उकेरने का प्रयास किया तो वह मन को शांति प्रदान करने लगा और अध्यात्म जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया। विचार, अध्यात्म, एवं पूर्व अनुभूति ने कब किताब का रूप धारण कर लिया कुछ ज्ञात ही नहीं हुआ।
इस किताब को लिखने का उद्देश्य अपने जीवन में आने वाले वह पहलू जिन्हें मैं कभी व्यक्त नहीं कर पाई और ना ही समझ पाई उनको लिखने का प्रयास किया है। जीवन रूपी गाड़ी ने जब रफ्तार पकड़ी तो उस समय मैं जीवन को अनुभव कर रही थी। आज पीछे मुड़कर देखने पर ज्ञात होता है कि वास्तव में जीवन ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। इस किताब का उद्देश्य जीवन को अनुभव से जोड़ना है।। अस्तु ।