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युग पुरुष - श्री नरेंद्र मोदी (व्यक्तित्व एवं कृतित्व) एक युगपुरुष की गाथा
युग पुरुष - श्री नरेंद्र मोदी (व्यक्तित्व एवं कृतित्व) एक युगपुरुष की गाथा

युग पुरुष - श्री नरेंद्र मोदी (व्यक्तित्व एवं कृतित्व) एक युगपुरुष की गाथा

By: ANURADHA PRAKASHAN (??????? ??????? ?????? )
150.00

Single Issue

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About this issue

प्रतिबिंव, प्रतिध्वनि, काव्य- कुसुम एवं पुष्पांजलि संस्करण के पश्चात युग पुरुष श्री नरेंद्र मोदी व्यक्तित्व एवं कृतित्व पुस्तक आपके समक्ष प्रस्तुत है।
कभी सोचा भी नहीं था कि विद्यालय काल में कक्षा में बैठकर क्लास लेक्चर के समय कॉपी के पिछले पन्नों पर त्वरित उमड़े भावों को उकेरना या कभी मन के उमड़ते विचारों को लिखना, आज साहित्य के क्षेत्र में नई पहचान बना देगा।
पढ़ने की रुचि वैसे पापा से विरासत में मिली। हर बात को किस्से-कहानियों के माध्यम से कहने की पापा की आदत थी। घर में हर पुस्तक आती थी। बस धीरे-धीरे पढ़ने की रुचि बढ़ती गई। हिंदी, गृह विज्ञान, इतिहास सदैव मेरे प्रिय विषय रहे। डॉ. (विद्यावाचस्पति) बी.एड. व एम.ए. की शिक्षा भी उसी में ग्रहण करी। मेरे ताऊजी (पापा के बड़े भाई) स्वतंत्रता सेनानी थे। सरकार से ताम्रपत्र भी प्राप्त हुआ था। परिवार के इन आदर्श विचारों का मेरी लेखनी पर भी प्रभाव पड़ा।
विवाह के पश्चात एक संयुक्त परिवार में आकर जीवन के दायित्वों को निभाने में समय कहाँ पंख लगा कर उड़ गया पता ही नहीं चला। हीं लिखने का शौक था वह धीरे-धीरे चलता रहा।
जीवन की यगियाँ में पुत्री दिशा व पुत्र देवेश के जन्म के पश्चात उन्हीं की परवरिश में स्वयं को भूल गई।
फिर समय ने करवट ली। बच्चों की शिक्षा प्रारंभ होते ही उन्हें पढ़ाते पढ़ाते पुनः मेरी लेखनी चलने लगी। कुछ अंतराल के बाद मेरे जीवन साथी के प्रेरित करने पर हिंदी प्राध्यापिका के रूप में अध्यापन के क्षेत्र में मैंने पदार्पण किया।
स्वयं अध्ययन के साथ-साथ अध्यापन की गहराइयों में उतरती चली गई। जीवन में कठिनाइयों बहुत आई। कई बार परिस्थितिवश हिम्मत हार जाती लेकिन फिर प्रयास करती जब तक सफलता न पा लेती।
'प्रतिबिंब' संस्करण के पश्चात लेखन में मानो नए आयाम मिलते गए। मन की इच्छाओं ने करवट लेना प्रारंभ कर दिया।

About युग पुरुष - श्री नरेंद्र मोदी (व्यक्तित्व एवं कृतित्व) एक युगपुरुष की गाथा

प्रतिबिंव, प्रतिध्वनि, काव्य- कुसुम एवं पुष्पांजलि संस्करण के पश्चात युग पुरुष श्री नरेंद्र मोदी व्यक्तित्व एवं कृतित्व पुस्तक आपके समक्ष प्रस्तुत है।
कभी सोचा भी नहीं था कि विद्यालय काल में कक्षा में बैठकर क्लास लेक्चर के समय कॉपी के पिछले पन्नों पर त्वरित उमड़े भावों को उकेरना या कभी मन के उमड़ते विचारों को लिखना, आज साहित्य के क्षेत्र में नई पहचान बना देगा।
पढ़ने की रुचि वैसे पापा से विरासत में मिली। हर बात को किस्से-कहानियों के माध्यम से कहने की पापा की आदत थी। घर में हर पुस्तक आती थी। बस धीरे-धीरे पढ़ने की रुचि बढ़ती गई। हिंदी, गृह विज्ञान, इतिहास सदैव मेरे प्रिय विषय रहे। डॉ. (विद्यावाचस्पति) बी.एड. व एम.ए. की शिक्षा भी उसी में ग्रहण करी। मेरे ताऊजी (पापा के बड़े भाई) स्वतंत्रता सेनानी थे। सरकार से ताम्रपत्र भी प्राप्त हुआ था। परिवार के इन आदर्श विचारों का मेरी लेखनी पर भी प्रभाव पड़ा।
विवाह के पश्चात एक संयुक्त परिवार में आकर जीवन के दायित्वों को निभाने में समय कहाँ पंख लगा कर उड़ गया पता ही नहीं चला। हीं लिखने का शौक था वह धीरे-धीरे चलता रहा।
जीवन की यगियाँ में पुत्री दिशा व पुत्र देवेश के जन्म के पश्चात उन्हीं की परवरिश में स्वयं को भूल गई।
फिर समय ने करवट ली। बच्चों की शिक्षा प्रारंभ होते ही उन्हें पढ़ाते पढ़ाते पुनः मेरी लेखनी चलने लगी। कुछ अंतराल के बाद मेरे जीवन साथी के प्रेरित करने पर हिंदी प्राध्यापिका के रूप में अध्यापन के क्षेत्र में मैंने पदार्पण किया।
स्वयं अध्ययन के साथ-साथ अध्यापन की गहराइयों में उतरती चली गई। जीवन में कठिनाइयों बहुत आई। कई बार परिस्थितिवश हिम्मत हार जाती लेकिन फिर प्रयास करती जब तक सफलता न पा लेती।
'प्रतिबिंब' संस्करण के पश्चात लेखन में मानो नए आयाम मिलते गए। मन की इच्छाओं ने करवट लेना प्रारंभ कर दिया।