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Sahitya main Nari ka Badalta Swaroop
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Sahitya main Nari ka Badalta Swaroop

By: ANURADHA PRAKASHAN (??????? ??????? ?????? )
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Single Issue

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About Sahitya main Nari ka Badalta Swaroop

वैसे तो रचनाकार का कोई लिंग नहीं होता । पुरुष लेखन और स्त्री लेखन में कोई विशेष अंतर भी नहीं होता । समय के तेज प्रवाह के कारण स्त्री लेखन ने आरंभ से ही सामाजिक चेतना का वाहक बनकर अपनी अलग पहचान बनाई है । भारतीय महिला साहित्यकारों में सामाजिक परिवर्तन के साथ–साथ समय और परिस्थिति से जूझने का एक अलग ही तेवर दिखाई पड़ता है । महिला रचनाकारों द्वारा रचा गया और रचा जा रहा साहित्य भी समाज व समय के संदर्भ में सत्य के प्रकाशन के लिए ही हैे । प्रकट रूप से नारी शक्ति जिन संघर्षों से जूझती रही है और आज भी जूझ रही है, प्राय% वही उनके साहित्य में भी झलकता है । नारी साहित्य पर यों तो अनेक पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं और इस विषय पर शोध कार्य भी हुए हैं किन्तु नारी लेखन पर समग्रता के साथ समयक विवेचन प्रकाश में नहीं आ पाया है । सुपरिचित शिक्षा आचार्या डॉ– सुधा शर्मा की पुस्तक ‘साहित्य में नारी का बदलता स्वरूप’ इस अभाव की पूर्ति करने का सरल और सार्थक प्रयास है । विदुषी लेखिका डॉ सुधा शर्मा एक लंबे समय तक केंद्रीय विद्यालय संगठन के विभिन्न विद्यालयों में अध्यापन और प्राचार्या कार्य से जुड़ी रही हैं । इनका शोध कार्य भी नारी लेखन पर ही केंद्रित रहा है । अत: इस क्षेत्र में इनका व्यापक अनुभव है । डॉ– सुधा ने अपने अध्ययन और जीवनानुभव का लाभ इस पुस्तक के लेखन में भरपूर उठाया है । लेखिका ने भारतीय समाज में नारी की शोचनीय और चिंतनीय अवस्था को बड़े ही निकटता से देखा है । अपने परिवेश के भोगे हुए यथार्थ को लिपिबद्ध करना कोई आसान कार्य नहीं है । फिर भी इस दुरुह कार्य को डॉ- सुधा शर्मा ने बड़ी ही निपुणता के साथ सफलतापूर्वक संपन्न किया है, जिसके लिए लेखिका विशेष बधाई की पात्र हैं । इस महत्वपूर्ण कृति में समकालीन साहित्य में नारी के बदलते स्वरूप की शोधपरक विवेचना की गई है । पांच अध्यायों में विभक्त पुस्तक की विषय वस्तु को लेखिका ने अपने गहन शोध अनुशीलन के आधार पर प्रस्तुत किया है । ‘उपन्यासों में नारी का बदलता स्वरूप’ अ/याय ने डॉ- सुधा शर्मा ने समाज में नारी की पृष्ठभूमि को व्याख्यायित करते हुए श्रद्धाराम फुलोरी के उपन्यास ‘भाग्यवती’, भारतेन्द्र हरिशचन्द्र के ‘पूर्ण प्रकाश और चन्द्रप्रभा’ और ठाकुर जगमोहन सिंह के ‘श्यामास्वप्न’ से लेकर किशोरीलाल गोस्वामी, देवकी नंदन खत्री, गोपाल राम गहमरी, मुंशी प्रेमचन्द, लाल श्रीनिवास दास, जयशंकर प्रसाद, विश्वम्भर नाथ शर्मा कौशिक, उग्र, भगवती प्रसाद वाजपेयी, निराला, वृंदावन लाल वर्मा, जयनेन्द्र, अंचल, अज्ञेय, यशपाल, अश्क, रेणु, धर्मवीर भारती, विष्णुप्रभाकर, राजेन्द्र यादव, मन्नु भंडारी, कृष्णा सोबती, कमलेश्वर, अमृता प्रीतम और उषा प्रियम्वदा की कथा यात्रा का विश्लेषण करते हुए विषय को प्रतिपादित किया है । ‘संत साहित्य में नारी का स्वरूप’ अध्याय में संत सुंदर दास, कबीर दास, दादू और संत धर्मदास सहित तत्कालीन संत कवियों की वाणी के माध्यम से निष्कर्ष निकाला हैµ ‘तत्कालीन समय में संत नारियों ने अपनी भावनाओं को भक्ति के माध्यम से व्यक्त किया । उन्हें बदले में कुछ नहीं मिलता था फिर भी उनके प्रेम का अंत नहीं होता है ।’ ‘मध्य वर्ग की विभिन्न समस्याएं और नारी’ अध्याय में भारतीय मध्य वर्ग की समस्याओं, प्रवृतियों, सीमाओं और आकांक्षाओं को हिंदी साहित्य के परिपे्रक्ष्य में विवेचित किया है । लेखिका ने राजकमल चैघरी, मार्क्स, यशपाल, प्रभाकर माचवे, अश्क, अज्ञेय, अमृतलाल नागर, नागार्जुन, रेणु और रांगेय राघव आदि के कथनों को उद्धृत करते हुए विषय का निरूपण किया है । ‘नारी पात्रों में % व्यक्तिवाद और सामाजिक यथार्थवाद’ अ/याय में हिंदी कथा साहित्य में वर्णित व्यक्तिवादी यथार्थवाद और सामाजिक यथार्थवाद को व्याख्यायित किया गया है । अपने कथ्य की पुष्टि में लेखिका ने अनेक समकालीन कथाकारों की कृतियों और उनके कथा पात्रों के कथनों को उद्धृत किया है । इस उल्लेखनीय कृति के अंतिम अ/याय ‘नारी सशक्तिकरण एवं लैंगिक समानता’ में भारतीय समाज में नारी की प्रस्थिति का /ाार्मिक, सामाजिक एवं राजनैतिक व्यवस्था के संदर्भ में विश्लेषण किया गया है । इसमें वैदिक काल से लेकर म/यकाल और आ/ाुनिक काल खण्ड के समाज और साहित्य में चित्रित लैंगिक समानता की खोज की गई है । इस प्रकार डॉ- सुधा शर्मा की यह कृति हिंदी साहित्य के परिप्रेक्ष्य में नारी समाज के बदलते स्वरूप का पूरी ईमानदारी के साथ विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत करने में सफल रही हैं । विषय का प्रतिपाद्य अनुसन्धानपरक है । सरल–सहज और बोधगम्य भाषा शैली लेखिका का अन्यतम विशेषता है । लेखिका का श्रम सफल एवं सार्थक है । आशा है इस कृति का हिंदी आलोचना जगत में भरपूर स्वागत होगा । लेखिका को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं । ह॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ (डॉ– हरि सिंह पाल) पूर्व अ/िाकारी–भारतीय प्रसारण सेवा, आकाशवाणी महामंत्री–नागरी लिपि परिषद मो : 9810981398