उम्र के शिखर पर बढ़ते कदम अक्सर विगत की निकटता का अनुभव करते हुए आगे बढ़ते हैं। विगत की निकटता कभी विगत को अतीत नहीं होने देती। श्याम टाकीज हमारे शहर गाडरवारा की उन धरोहरों में शामिल है जिसकी अंतरंगता में पुरानी पीढ़ी का बचपन गुजरा है। ऐसा लगभग हर एक शहर में होता रहा है। एक टाकीज और बेतरतीब बसाहट, हर बसाहट के साथ मोहल्ले का कोई न कोई अघोषित नाम जो उस मोहल्ले की ओर और वहां रहने वालों की पहचान बन जाता रहा है। एक नदी, एक शहर और कई गलियां, हर गली के किसी न किसी मकान में कोई न कोई परिचित रहता ही था, क्योंकि तब इंसानों की भीड़ कम थी और इंसानियत इन घरों में बसती थी। आवागमन के साधन कम थे तो पैदल दूरी नाप ली जाती थी और चुल्लू में पानी भर कर अपने कंठ की प्यास बुझा ली जाती थी। हर कोई अपना होता था तो उनके साथ कोई न कोई स्मृतियां भी जुड़ी होती थीं, इस कारण से ही तो मान लिया जाता है कि अतीत भी कहानी ही होती है।
उम्र के शिखर पर बढ़ते कदम अक्सर विगत की निकटता का अनुभव करते हुए आगे बढ़ते हैं। विगत की निकटता कभी विगत को अतीत नहीं होने देती। श्याम टाकीज हमारे शहर गाडरवारा की उन धरोहरों में शामिल है जिसकी अंतरंगता में पुरानी पीढ़ी का बचपन गुजरा है। ऐसा लगभग हर एक शहर में होता रहा है। एक टाकीज और बेतरतीब बसाहट, हर बसाहट के साथ मोहल्ले का कोई न कोई अघोषित नाम जो उस मोहल्ले की ओर और वहां रहने वालों की पहचान बन जाता रहा है। एक नदी, एक शहर और कई गलियां, हर गली के किसी न किसी मकान में कोई न कोई परिचित रहता ही था, क्योंकि तब इंसानों की भीड़ कम थी और इंसानियत इन घरों में बसती थी। आवागमन के साधन कम थे तो पैदल दूरी नाप ली जाती थी और चुल्लू में पानी भर कर अपने कंठ की प्यास बुझा ली जाती थी। हर कोई अपना होता था तो उनके साथ कोई न कोई स्मृतियां भी जुड़ी होती थीं, इस कारण से ही तो मान लिया जाता है कि अतीत भी कहानी ही होती है।