logo

Get Latest Updates

Stay updated with our instant notification.

logo
logo
account_circle Login
Abhi Kurukshetra Aur Baaki Hai अभी कुरुक्षेत्र और बाकी है
Abhi Kurukshetra Aur Baaki Hai अभी कुरुक्षेत्र और बाकी है

Abhi Kurukshetra Aur Baaki Hai अभी कुरुक्षेत्र और बाकी है

By: ANURADHA PRAKASHAN (??????? ??????? ?????? )
175.00

Single Issue

175.00

Single Issue

About this issue

यह तो मुझे भी नहीं पता कि मैं एक कवि कैसे बना; मगर इतना याद है कि मैं हरियाणा लैंड मोरगेज बैंक में क्लर्क की नौकरी करता था। तब मैं दिन में नौकरी करता और शाम के समय अपनी आगे की पढ़ाई करता। एक दिन मैं अपनी मेज पर बैठा सरकारी काम निपटा रहा था और जब खाली हो गया तो मैं पैन लेकर कुछ लिखने लग गया।
तभी मेरे बैंक के एक मित्र आ गए और मेरे लिखे को पढ़ने लगे। पढ़कर बोले, भाई यह तो बहुत अच्छी कविता है, कैसे लिखी और वह कविता के चन्छ लाईनें सोचता हूँ मैं, एक को टाईप करके जाग्रति मैंगजीन चण्डीगढ़ को भेज दी गई। लगभग 20-25 दिन के बाद, बैंक का चपड़ासी जाग्रति मैगजीन मेरे पास लेकर आ गया। उसमें मेरी लिखी कविता छप चुकी थी। मैंने अपने दोस्त को दिखाया। वह खुशी से झूम उठा और मैं अचानक एक कवि बन गया।
उसके बाद कुछ और कविताएँ लिखी और वह भी छपती चली गई। फिर कविता लिखने का सिलसिला रुका नहीं हालांकि मैं विधिवत कभी कोई कवि नहीं बन सका, मगर इक्का-दुक्का कविता लिखनी रुकी भी नहीं।
कुछ समय बाद बैंक की नौकरी छोड़कर जमीनों के व्यापार में चला गया। फिर ज्यादा समय मैं कविता नहीं दे सका; मगर कभी कभी लिखता भी रहा और दोस्तों, रिश्तेदारों, अड़ोसी-पड़ोसियों में कुछ नाम भी कमाया।
आज समय भी है, इच्छा भी है की जो कुछ धीरे-धीरे कविताएं लिखी गई, इस ख्याल से कि शायद मेरे विचार किसी से काम आ सकें।
आपका नरेन्द्र लोचब

About Abhi Kurukshetra Aur Baaki Hai अभी कुरुक्षेत्र और बाकी है

यह तो मुझे भी नहीं पता कि मैं एक कवि कैसे बना; मगर इतना याद है कि मैं हरियाणा लैंड मोरगेज बैंक में क्लर्क की नौकरी करता था। तब मैं दिन में नौकरी करता और शाम के समय अपनी आगे की पढ़ाई करता। एक दिन मैं अपनी मेज पर बैठा सरकारी काम निपटा रहा था और जब खाली हो गया तो मैं पैन लेकर कुछ लिखने लग गया।
तभी मेरे बैंक के एक मित्र आ गए और मेरे लिखे को पढ़ने लगे। पढ़कर बोले, भाई यह तो बहुत अच्छी कविता है, कैसे लिखी और वह कविता के चन्छ लाईनें सोचता हूँ मैं, एक को टाईप करके जाग्रति मैंगजीन चण्डीगढ़ को भेज दी गई। लगभग 20-25 दिन के बाद, बैंक का चपड़ासी जाग्रति मैगजीन मेरे पास लेकर आ गया। उसमें मेरी लिखी कविता छप चुकी थी। मैंने अपने दोस्त को दिखाया। वह खुशी से झूम उठा और मैं अचानक एक कवि बन गया।
उसके बाद कुछ और कविताएँ लिखी और वह भी छपती चली गई। फिर कविता लिखने का सिलसिला रुका नहीं हालांकि मैं विधिवत कभी कोई कवि नहीं बन सका, मगर इक्का-दुक्का कविता लिखनी रुकी भी नहीं।
कुछ समय बाद बैंक की नौकरी छोड़कर जमीनों के व्यापार में चला गया। फिर ज्यादा समय मैं कविता नहीं दे सका; मगर कभी कभी लिखता भी रहा और दोस्तों, रिश्तेदारों, अड़ोसी-पड़ोसियों में कुछ नाम भी कमाया।
आज समय भी है, इच्छा भी है की जो कुछ धीरे-धीरे कविताएं लिखी गई, इस ख्याल से कि शायद मेरे विचार किसी से काम आ सकें।
आपका नरेन्द्र लोचब