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Baagi Bhediya बागी भेड़िया
Baagi Bhediya बागी भेड़िया

Baagi Bhediya बागी भेड़िया

By: ANURADHA PRAKASHAN (??????? ??????? ?????? )
113.00

Single Issue

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About this issue

मन की बात
जीवन क्या है? सफलता पा लेना या समाज में ऊंचाई पर चले जाना ही जीवन है। मेरे विचार से यह जीवन है ही नहीं। जीवन में हम कितने भी सफल हो जाएं या कितनी भी ऊंचाई पर चले जाएं, अगर अपना कहलाने वाला अगर कोई नहीं है तो हमारा जीवन व्यर्थ ही है। पहाड़ की चोटी पर पहुंचने वाला अकेला होने पर उतर ही आता है, वैसा ही जीवन में होता है। आपके सुख के साथ आपके दुःख में भी अगर कोई अपना खड़ा है तो समझिए कि आपका जीवन सफल है और यही जीवन है। अपनों को बांध कर रखिए, ये बहुमूल्य हैं। इनके बिना जीवन कुछ भी नहीं है। इस पुस्तक का शीर्षक "बागी भेड़िया” में भेड़िया तो एक जानवर है परन्तु वह अपने परिवार और अपने कुनबे के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाता है। भेड़िया अपने आप में जीता है किसी और की गुलामी उसको पसंद नहीं। वह अपने सामाजिक ढांचे में खुश हैं। गुलाम बनकर उसे सुख नहीं चाहिए। उसका चरित्र मुझे भाता है। अपनों के साथ मन से रहिए पर किसी की गुलामी नहीं करना। अपनी मौत को भी सामने देख कर जो अड़ा रहे वही तो है बागी भेड़िया। इस पुस्तक में लिखे सारी कविताएं मेरे अपने अनुभव के आधार पर हैं जो समाज के बीच रह कर पाएं हैं। अगर इसका किसी के जीवन से संबंध होता है तो वह मात्र
संयोग ही कहा जाएगा।

About Baagi Bhediya बागी भेड़िया

मन की बात
जीवन क्या है? सफलता पा लेना या समाज में ऊंचाई पर चले जाना ही जीवन है। मेरे विचार से यह जीवन है ही नहीं। जीवन में हम कितने भी सफल हो जाएं या कितनी भी ऊंचाई पर चले जाएं, अगर अपना कहलाने वाला अगर कोई नहीं है तो हमारा जीवन व्यर्थ ही है। पहाड़ की चोटी पर पहुंचने वाला अकेला होने पर उतर ही आता है, वैसा ही जीवन में होता है। आपके सुख के साथ आपके दुःख में भी अगर कोई अपना खड़ा है तो समझिए कि आपका जीवन सफल है और यही जीवन है। अपनों को बांध कर रखिए, ये बहुमूल्य हैं। इनके बिना जीवन कुछ भी नहीं है। इस पुस्तक का शीर्षक "बागी भेड़िया” में भेड़िया तो एक जानवर है परन्तु वह अपने परिवार और अपने कुनबे के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाता है। भेड़िया अपने आप में जीता है किसी और की गुलामी उसको पसंद नहीं। वह अपने सामाजिक ढांचे में खुश हैं। गुलाम बनकर उसे सुख नहीं चाहिए। उसका चरित्र मुझे भाता है। अपनों के साथ मन से रहिए पर किसी की गुलामी नहीं करना। अपनी मौत को भी सामने देख कर जो अड़ा रहे वही तो है बागी भेड़िया। इस पुस्तक में लिखे सारी कविताएं मेरे अपने अनुभव के आधार पर हैं जो समाज के बीच रह कर पाएं हैं। अगर इसका किसी के जीवन से संबंध होता है तो वह मात्र
संयोग ही कहा जाएगा।