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Baatchit बातचीत
Baatchit बातचीत

Baatchit बातचीत

By: ANURADHA PRAKASHAN (??????? ??????? ?????? )
113.00

Single Issue

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About this issue

आप जानना चाहेंगे कि ये बातचीत का मुद्दा कहां से उभर कर आ गया। सेवा भार से मुक्त हुए ही थे कि कोरोना जैसी भयंकर बीमारी ने हर किसी को घरों में बंद रहने के लिए मजबूर कर दिया।
दीवारें झांकना, इसकी उसकी सबकी चिंता करते रहना, अपने ही घर के सब सदस्यों से एक ही घर में दूरी बना कर रखना आदि, जैसे कारणों ने हर किसी को हर किसी से दूर कर दिया। बातचीत तो जैसे हर कोई भूल गया था। शायद किसी बुरी खबर से किनारा कर रहा होगा। बीमार लोगों का तो जैसे संतुलन ही खो गया था। किसी ने अच्छी खबर देने की भी कोशिश की हो तो अपनी मजबूरी की खीझ उसी पर उतार देना एक आम लहजा बन गया।
कुछ ऐसी ही समस्याओं से उलझते हुए खुद से ही बातचीत करने का किस्सा शुरू हुआ। और उस काम में लग गया जो पहले कभी नहीं किया था।
और वो था, जो जीवन की सड़क पर देखा सुना या सहा, उसको कागज़ पर उतारना एक कविता संग्रह के रूप में। फिर एक दिन पता नहीं कहां से एक विचार आया की क्यों न सब के बारे में कुछ बातचीत की जाए और इस तरह जो मन ने माना लिख डाला।

About Baatchit बातचीत

आप जानना चाहेंगे कि ये बातचीत का मुद्दा कहां से उभर कर आ गया। सेवा भार से मुक्त हुए ही थे कि कोरोना जैसी भयंकर बीमारी ने हर किसी को घरों में बंद रहने के लिए मजबूर कर दिया।
दीवारें झांकना, इसकी उसकी सबकी चिंता करते रहना, अपने ही घर के सब सदस्यों से एक ही घर में दूरी बना कर रखना आदि, जैसे कारणों ने हर किसी को हर किसी से दूर कर दिया। बातचीत तो जैसे हर कोई भूल गया था। शायद किसी बुरी खबर से किनारा कर रहा होगा। बीमार लोगों का तो जैसे संतुलन ही खो गया था। किसी ने अच्छी खबर देने की भी कोशिश की हो तो अपनी मजबूरी की खीझ उसी पर उतार देना एक आम लहजा बन गया।
कुछ ऐसी ही समस्याओं से उलझते हुए खुद से ही बातचीत करने का किस्सा शुरू हुआ। और उस काम में लग गया जो पहले कभी नहीं किया था।
और वो था, जो जीवन की सड़क पर देखा सुना या सहा, उसको कागज़ पर उतारना एक कविता संग्रह के रूप में। फिर एक दिन पता नहीं कहां से एक विचार आया की क्यों न सब के बारे में कुछ बातचीत की जाए और इस तरह जो मन ने माना लिख डाला।