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bhagwat prapti ke sadhan भगवत प्राप्ति के साधन
bhagwat prapti ke sadhan भगवत प्राप्ति के साधन

bhagwat prapti ke sadhan भगवत प्राप्ति के साधन

By: ANURADHA PRAKASHAN (??????? ??????? ?????? )
213.00

Single Issue

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About this issue

परम परमेश्वर परमात्मा के निर्देशानुसार प्रजापति ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की। उपनिषद एवं पुराणों के अनुसार सृष्टि की रचना उपरांत सृष्टि के सफल संचालन एंव संरक्षरण हितार्थ मनु एवं शतरूपा के रूप में योगबल के माध्यम से सर्व प्रथम युगल की उत्पत्ति की। कालांतर में यह युगल (मनु एवं शतरूपा) मानव उत्पत्ति के आधार में परिवर्तित हो गया। परमात्मा ने सृष्टि के सफल संचालन एवं संरक्षरण हितार्थ मानव को असीम बुद्धि, विचार शक्ति, निर्णय शक्ति, चारित्रिक, आत्म बल, आध्यात्मिक एवं आत्मा के मौलिक गुणों से परिपूर्ण सुन्दर, स्वस्थ एवं क्रियाशील शरीर प्रदान किया ताकि मानव सङ्कर्म के माध्यम से सृष्टि के सफल संचालन में सहायता प्रदान करने के संग सृष्टि में विद्यमान सृष्टि के अन्य घटक यथा वृक्ष-पौधे, जीव-जंतुओं को संरक्षण प्रदान कर सकें। 
परमात्मा ने मानव को आत्मा के मौलिक गुणों यथा ज्ञान, आनंद, शांति, प्रेम, सहयोग, स्वतंत्रता, ईमानदारी, विनम्रता, पवित्रता, एकता, सहनशीलता, सत्य, अहिंसा, उत्तरदायित्व की भावना से परिपूर्ण करके संसार में भेजा है ताकि वह निस्वार्थ भाव से, स्वयं, समाज कल्याण के संग सङ्कर्म के माध्यम से संसार में विद्यमान प्रत्येक प्राणी, जीव जंतु, वातावरण, प्रकृति को संरक्षण प्रदान कर, सृष्टि के सफल संचालन में सहायक बन सकें। 
केवल मानव ही कर्म योनि का अधिकारी है। वह बुद्धि, विवेक, तर्क, निर्णय शक्ति, विचार, चारित्रिक, आध्यात्मिक, मूल्य शिक्षा, सङ्कर्म के माध्यम से मानव जीवन के प्रमुख लक्ष्य समाज कल्याण, प्रभु भक्ति के साथ-साथ मौक्ष (जन्म-मृत्यु के भंवरजाल से मुक्ति) को प्राप्त कर सकता है। 

About bhagwat prapti ke sadhan भगवत प्राप्ति के साधन

परम परमेश्वर परमात्मा के निर्देशानुसार प्रजापति ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की। उपनिषद एवं पुराणों के अनुसार सृष्टि की रचना उपरांत सृष्टि के सफल संचालन एंव संरक्षरण हितार्थ मनु एवं शतरूपा के रूप में योगबल के माध्यम से सर्व प्रथम युगल की उत्पत्ति की। कालांतर में यह युगल (मनु एवं शतरूपा) मानव उत्पत्ति के आधार में परिवर्तित हो गया। परमात्मा ने सृष्टि के सफल संचालन एवं संरक्षरण हितार्थ मानव को असीम बुद्धि, विचार शक्ति, निर्णय शक्ति, चारित्रिक, आत्म बल, आध्यात्मिक एवं आत्मा के मौलिक गुणों से परिपूर्ण सुन्दर, स्वस्थ एवं क्रियाशील शरीर प्रदान किया ताकि मानव सङ्कर्म के माध्यम से सृष्टि के सफल संचालन में सहायता प्रदान करने के संग सृष्टि में विद्यमान सृष्टि के अन्य घटक यथा वृक्ष-पौधे, जीव-जंतुओं को संरक्षण प्रदान कर सकें। 
परमात्मा ने मानव को आत्मा के मौलिक गुणों यथा ज्ञान, आनंद, शांति, प्रेम, सहयोग, स्वतंत्रता, ईमानदारी, विनम्रता, पवित्रता, एकता, सहनशीलता, सत्य, अहिंसा, उत्तरदायित्व की भावना से परिपूर्ण करके संसार में भेजा है ताकि वह निस्वार्थ भाव से, स्वयं, समाज कल्याण के संग सङ्कर्म के माध्यम से संसार में विद्यमान प्रत्येक प्राणी, जीव जंतु, वातावरण, प्रकृति को संरक्षण प्रदान कर, सृष्टि के सफल संचालन में सहायक बन सकें। 
केवल मानव ही कर्म योनि का अधिकारी है। वह बुद्धि, विवेक, तर्क, निर्णय शक्ति, विचार, चारित्रिक, आध्यात्मिक, मूल्य शिक्षा, सङ्कर्म के माध्यम से मानव जीवन के प्रमुख लक्ष्य समाज कल्याण, प्रभु भक्ति के साथ-साथ मौक्ष (जन्म-मृत्यु के भंवरजाल से मुक्ति) को प्राप्त कर सकता है।