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HINDI KATHA LEKHIKAO KI JEEVAN AUR DRISTHI
HINDI KATHA LEKHIKAO KI JEEVAN AUR DRISTHI

HINDI KATHA LEKHIKAO KI JEEVAN AUR DRISTHI

By: ANURADHA PRAKASHAN (??????? ??????? ?????? )
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कथा साहित्य के दर्शन एवं दृष्टि की बखूबी परख
कथा-साहित्य आधुनिक युग की सार्थक एवं लोकप्रिय विधा है। तमाम व्यस्ताओं के बीच भी कहानी, लघु कथा और उपन्यासों की पठनीयता अभी बरकरार है। मशीनी उपकरणों के इस युग में कथा-साहित्य ने भी अपने आयामों का, संप्रेषणीयता की संभावनाओं का विस्तार किया है। कहानी और उपन्यास के उद्भव तथा विकास पर दृष्टि डालें तो सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि युग-सापेक्षी परिवर्तन न केवल कथानक में अपितु कहानी-उपन्यासों की भाषा में, पात्र-योजना में, प्रतीक-व्यवस्था में तथा उद्देश्य आदि में भी मुखर रूप से उद्घाटित होता है।
भारतेंदु युगीन आधुनिक साहित्य से हम इस परिवर्तन एवं बदलाव को, विचार एवं चिंतन की श्रृंखला को, बदलते मुहावरे और भाषाई तेवर को सहज ही देख सकते हैं, उसका अनुभव भी कर सकते हैं। हिंदी कथा साहित्य में जब से कथा-लेखिकाओं का प्रवेश हुआ, इस परिवर्तन के आयाम भी स्पष्ट दिखाई देने लगे। स्त्री-मन से निःसृत कथाएँ, कहानियाँ अथवा उपन्यास आदि के कथानकों में समकालीन समस्याओं एवं चुनौतियों को कथा-बिंदुओं में पिरोकर अत्यंत प्रभावी रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा ।
उषा प्रियंवदा, मधु कांकरियाँ, मृदुला गर्ग, नासिरा शर्मा, मालती जोशी, मृणाल पांडे, मेहरून्निसा परवेज तथा अन्य कथा लेखिकाएँ जीवन, परिवार, समाज, रीति-रिवाज, परंपराओं, नैतिक मूल्यों, जीवन में काम-संबंधों की भूमिका, कल्पना और यथार्थ, आदर्श और वास्तविकता की व्यवहार आदि को जितनी गहराई से, प्रौढ़ता एवं गंभीरता से देखती महसूस करती हैं, उन सभी स्थितियों- परिस्थितियों का जीवंत चित्रण अपनी कथात्मक रचनाओं में प्रामाणिकता के साथ करती हैं। वर्तमान आधुनिक उत्तर आधुनिक समय एवं समाज में पैदा हो रहे बिखराव को, टूटन को, एकाकीपन के त्रास को, नारी मन की अस्मिता और अहम् भाव को, परंपरा और आधुनिकता के बीच पैदा हो रहे द्वंद्व एवं संघर्ष को इन लेखिकाओं ने हृदय स्पर्शी शैली में व्यक्त कर हिंदी कथा साहित्य ही नहीं, संपूर्ण वैश्विक कथा-जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। इनकी अनेक कहानियों-उपन्यासों के अनुवाद भी हुए हैं तथा लोकप्रियता के कारण अन्य भाषाओं में भी इनकी माँग बढ़ रही है। कथा-साहित्य की मूलभूत संवेदना तथा मूल्यों के बदलाव अथवा अंतद्वंद्व की इस गूँज को हम इन लेखिकाओं की गय रचनाओं में बखूबी देख और महसूस कर सकते हैं।
इस पुस्तक “ हिंदी कथा-लेखिकाओं की जीवन और दृष्टि' की लेखिका डॉ. राजकुमारी शर्मा एवं प्रबुद्ध चिंतक भाषा एवं साहित्य को समर्पित शिक्षिका तथा समाज-मनोविज्ञान को समझने वाली मूक-साधिका हैं। अनेक शोध-पत्र, शोध-आलेख, पुस्तकों का लेखन तथा वक्तव्य आदि से डॉ. राजकुमारी अपनी विदुत्ता का परिचय देती रही हैं। स्त्री लेखिकाओं की कथा-साहित्य विषयक विचेचना को, उनके दर्शन एवं दृष्टि को लेखिका डॉ. राजकुमारी शर्मा ने बखूबी समझा और आत्मसात किया है। कहानी-उपन्यास की सैद्धांतिकी के परिप्रेक्ष्य में इन आठ विषय प्रसिद्ध हिंदी कथा-लेखिका के मन और मानवीयता का तटस्थ अध्ययन-मूल्यांकन करते हुए लेखिका डॉ. राजकुमारी ने अपने समीक्षक मन का तथा गंभीर समालोचक होने का भी परिचय दिया है।
डॉ. राजकुमारी शर्मा के पास विषय एवं भाषा का सारस्वत अधिकार उपलब्ध है। उनकी साहित्यिक अभिरुचि एवं समझ प्रशंसनीय है। इस पुस्तक के प्रकाशन से निश्चित ही उनकी साहित्य-साधना की पहचान और अधिक प्रगाढ़ होगी तथा सभी पाठकों, शोधार्थियों एवं साहित्य प्रेमियों को इस पुस्तक से उपकृत होने का सौभाग्य भी मिलेगा। मैं डॉ. राजकुमारी शर्मा की इस साहित्य-साधना के लिए उन्हें हृदय से साधुवाद देता हूँ तथा ईश्वर से, माँ सरस्वती से प्रार्थना करता हूँ कि उनकी कृपा लेखिका डॉ. राजकुमारी शर्मा पर सदा-सर्वदा बनी रहे और वो इसी ई। प्रकार शत-शत साधुवाद, आत्मिक बधाई ।
प्रोफेसर पूरनचंद टंडन
वरिष्ठ प्रोफेसर, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय अध्यक्ष, नव उन्ययन साहित्यिक सोसाइटी

About HINDI KATHA LEKHIKAO KI JEEVAN AUR DRISTHI

कथा साहित्य के दर्शन एवं दृष्टि की बखूबी परख
कथा-साहित्य आधुनिक युग की सार्थक एवं लोकप्रिय विधा है। तमाम व्यस्ताओं के बीच भी कहानी, लघु कथा और उपन्यासों की पठनीयता अभी बरकरार है। मशीनी उपकरणों के इस युग में कथा-साहित्य ने भी अपने आयामों का, संप्रेषणीयता की संभावनाओं का विस्तार किया है। कहानी और उपन्यास के उद्भव तथा विकास पर दृष्टि डालें तो सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि युग-सापेक्षी परिवर्तन न केवल कथानक में अपितु कहानी-उपन्यासों की भाषा में, पात्र-योजना में, प्रतीक-व्यवस्था में तथा उद्देश्य आदि में भी मुखर रूप से उद्घाटित होता है।
भारतेंदु युगीन आधुनिक साहित्य से हम इस परिवर्तन एवं बदलाव को, विचार एवं चिंतन की श्रृंखला को, बदलते मुहावरे और भाषाई तेवर को सहज ही देख सकते हैं, उसका अनुभव भी कर सकते हैं। हिंदी कथा साहित्य में जब से कथा-लेखिकाओं का प्रवेश हुआ, इस परिवर्तन के आयाम भी स्पष्ट दिखाई देने लगे। स्त्री-मन से निःसृत कथाएँ, कहानियाँ अथवा उपन्यास आदि के कथानकों में समकालीन समस्याओं एवं चुनौतियों को कथा-बिंदुओं में पिरोकर अत्यंत प्रभावी रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा ।
उषा प्रियंवदा, मधु कांकरियाँ, मृदुला गर्ग, नासिरा शर्मा, मालती जोशी, मृणाल पांडे, मेहरून्निसा परवेज तथा अन्य कथा लेखिकाएँ जीवन, परिवार, समाज, रीति-रिवाज, परंपराओं, नैतिक मूल्यों, जीवन में काम-संबंधों की भूमिका, कल्पना और यथार्थ, आदर्श और वास्तविकता की व्यवहार आदि को जितनी गहराई से, प्रौढ़ता एवं गंभीरता से देखती महसूस करती हैं, उन सभी स्थितियों- परिस्थितियों का जीवंत चित्रण अपनी कथात्मक रचनाओं में प्रामाणिकता के साथ करती हैं। वर्तमान आधुनिक उत्तर आधुनिक समय एवं समाज में पैदा हो रहे बिखराव को, टूटन को, एकाकीपन के त्रास को, नारी मन की अस्मिता और अहम् भाव को, परंपरा और आधुनिकता के बीच पैदा हो रहे द्वंद्व एवं संघर्ष को इन लेखिकाओं ने हृदय स्पर्शी शैली में व्यक्त कर हिंदी कथा साहित्य ही नहीं, संपूर्ण वैश्विक कथा-जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। इनकी अनेक कहानियों-उपन्यासों के अनुवाद भी हुए हैं तथा लोकप्रियता के कारण अन्य भाषाओं में भी इनकी माँग बढ़ रही है। कथा-साहित्य की मूलभूत संवेदना तथा मूल्यों के बदलाव अथवा अंतद्वंद्व की इस गूँज को हम इन लेखिकाओं की गय रचनाओं में बखूबी देख और महसूस कर सकते हैं।
इस पुस्तक “ हिंदी कथा-लेखिकाओं की जीवन और दृष्टि' की लेखिका डॉ. राजकुमारी शर्मा एवं प्रबुद्ध चिंतक भाषा एवं साहित्य को समर्पित शिक्षिका तथा समाज-मनोविज्ञान को समझने वाली मूक-साधिका हैं। अनेक शोध-पत्र, शोध-आलेख, पुस्तकों का लेखन तथा वक्तव्य आदि से डॉ. राजकुमारी अपनी विदुत्ता का परिचय देती रही हैं। स्त्री लेखिकाओं की कथा-साहित्य विषयक विचेचना को, उनके दर्शन एवं दृष्टि को लेखिका डॉ. राजकुमारी शर्मा ने बखूबी समझा और आत्मसात किया है। कहानी-उपन्यास की सैद्धांतिकी के परिप्रेक्ष्य में इन आठ विषय प्रसिद्ध हिंदी कथा-लेखिका के मन और मानवीयता का तटस्थ अध्ययन-मूल्यांकन करते हुए लेखिका डॉ. राजकुमारी ने अपने समीक्षक मन का तथा गंभीर समालोचक होने का भी परिचय दिया है।
डॉ. राजकुमारी शर्मा के पास विषय एवं भाषा का सारस्वत अधिकार उपलब्ध है। उनकी साहित्यिक अभिरुचि एवं समझ प्रशंसनीय है। इस पुस्तक के प्रकाशन से निश्चित ही उनकी साहित्य-साधना की पहचान और अधिक प्रगाढ़ होगी तथा सभी पाठकों, शोधार्थियों एवं साहित्य प्रेमियों को इस पुस्तक से उपकृत होने का सौभाग्य भी मिलेगा। मैं डॉ. राजकुमारी शर्मा की इस साहित्य-साधना के लिए उन्हें हृदय से साधुवाद देता हूँ तथा ईश्वर से, माँ सरस्वती से प्रार्थना करता हूँ कि उनकी कृपा लेखिका डॉ. राजकुमारी शर्मा पर सदा-सर्वदा बनी रहे और वो इसी ई। प्रकार शत-शत साधुवाद, आत्मिक बधाई ।
प्रोफेसर पूरनचंद टंडन
वरिष्ठ प्रोफेसर, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय अध्यक्ष, नव उन्ययन साहित्यिक सोसाइटी