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Mil Gaya मिल गया
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By: ANURADHA PRAKASHAN (??????? ??????? ?????? )
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About this issue

दोस्तो !
मेरी पहली पुस्तक 'मिल गया' आप सबके बीच मौजूद है मगर इस पुस्तक की कामयाबी का श्रेय तीन लोगों को जाता है- एक तो मेरे गुरु श्री राज नारायण राम उर्फ दिलबर देहाती जी और दूसरा मेरे स्वर्गीय पिता शीतला प्रसाद मिश्रा जी जिनका अंश मेरी रगों में है और तीसरा श्री मनमोहन शर्मा 'शरण' जी को जाता है क्योंकि इस पुस्तक को आप तक लाने के लिए मुझे ज्ञान, मेरे गुरु जी से मिला और सहयोग, मनमोहन शर्मा 'शरण' जी का था तथा आशीर्वाद, मेरे पिता जी का मिला जब ये तीनों मिले तभी ये सम्भव हो पाया अन्यथा मैं क्या, मेरी औकात क्या? जो मैं आप सबके सामने खड़ा भी हो पाऊं। माताजी तो मेरी आत्मा हैं ही, उनके बारे में लिखना अपने बारे में लिखने जैसे होगा जो आसान नहीं, मेरे लिए ही नहीं औरों के लिए भी।
दोस्तों ! अक्सर आपने लोगों को ये कहते हुए सुना होगा कि मेरे पास समय नहीं है उस वक़्त उन्होंने बिना सोचे समझे कहा होगा जबकि यही सत्य है कि सही में हमारे पास समय नहीं है इस लिए जो आप करना चाहते हैं कर डालिये क्योंकि हमारी तो जैसे तैसे कट ही जायेगी मगर जो हमारी आने वाली नस्लें हैं उनके लिए जीवन यापन करना इतना आसान नहीं होगा अगर हम-आप ये चाहते हैं कि हमारी आने वाली नस्लें सुख-शांति से अपना जीवन व्यतीत करें तो कुछ करें।

About Mil Gaya मिल गया

दोस्तो !
मेरी पहली पुस्तक 'मिल गया' आप सबके बीच मौजूद है मगर इस पुस्तक की कामयाबी का श्रेय तीन लोगों को जाता है- एक तो मेरे गुरु श्री राज नारायण राम उर्फ दिलबर देहाती जी और दूसरा मेरे स्वर्गीय पिता शीतला प्रसाद मिश्रा जी जिनका अंश मेरी रगों में है और तीसरा श्री मनमोहन शर्मा 'शरण' जी को जाता है क्योंकि इस पुस्तक को आप तक लाने के लिए मुझे ज्ञान, मेरे गुरु जी से मिला और सहयोग, मनमोहन शर्मा 'शरण' जी का था तथा आशीर्वाद, मेरे पिता जी का मिला जब ये तीनों मिले तभी ये सम्भव हो पाया अन्यथा मैं क्या, मेरी औकात क्या? जो मैं आप सबके सामने खड़ा भी हो पाऊं। माताजी तो मेरी आत्मा हैं ही, उनके बारे में लिखना अपने बारे में लिखने जैसे होगा जो आसान नहीं, मेरे लिए ही नहीं औरों के लिए भी।
दोस्तों ! अक्सर आपने लोगों को ये कहते हुए सुना होगा कि मेरे पास समय नहीं है उस वक़्त उन्होंने बिना सोचे समझे कहा होगा जबकि यही सत्य है कि सही में हमारे पास समय नहीं है इस लिए जो आप करना चाहते हैं कर डालिये क्योंकि हमारी तो जैसे तैसे कट ही जायेगी मगर जो हमारी आने वाली नस्लें हैं उनके लिए जीवन यापन करना इतना आसान नहीं होगा अगर हम-आप ये चाहते हैं कि हमारी आने वाली नस्लें सुख-शांति से अपना जीवन व्यतीत करें तो कुछ करें।