logo

Get Latest Updates

Stay updated with our instant notification.

logo
logo
account_circle Login
Somvar 7 August
Somvar 7 August

About this issue

जीवन का अपना गणित है और इस गणित से निकलने वाला गुणनफल कहानी है। मैं तो कम से कम इसे ऐसे ही देखता हूँ। कभी होती थीं काल्पनिक कहानियां तब शायद यह सच नहीं होता पर अब तो कहानियों का रूप परिवर्तित हो चुका है, अब कहानियां जीवतंता लिए होती है। कहानियो में दर्द होता है. कहानियों में आनंद होता है और कहानियों में वह सच भी होता है जो आमतौर पर कह नहीं पाते। कहानियां केवल मनोरंजन के लिए नहीं होती। वर्तमान में खड़े होकर विगत में झांकना और वर्तमान में खड़े रहकर भविष्य की ओर ताकना दोनों कार्य सहज तो नहीं हो सकते। हमारे ही समाज के किसी पात्र को लेकर उसकी आगत और विगत का चित्रण करना भी सरल नहीं हो सकता पर जब यह कठिन कार्य किया ही जाता है तब ही तो कहानी का एक स्वरूप उभर आता है। जीवन के उतार चढ़ाव को शब्द चाहिए, जीवन के अनकहे पहलू को शब्द चाहिए शब्द तो मिल गए तो एक पूरी कहानी सजीव हो उठती है। पाठक को सजीवता पसंद आने लगी है। कल्पनाओं की दुनिया से बाहर हो चुका है पाठक । मुंशी प्रेमचंद ने जब कहानियां सृजित कीं, उपन्यास सृजित किए और बता दिया कि हमारे नायक या नायिका के लिए कल्पनाओं की सैर करना कतई जरूरी नहीं है। हमारा समाज ही इतना बड़ा है, हमारा जीवन ही कई घटनाओं का मूक दर्शक है तब कल्पनाओं में जीने की क्या जरूरत है। हर एक के जीवन में कई-कई कहानियों भरी होती हैं सुख की भी और दुख की भी इनका ही इन्द्रधनुषीय रूप उकेरना है सच मानो की एक अच्छी कहानी पाठक के आंखों से पानी भी बहा सकती है और उसके मुख पर प्रसन्नता के भाव भी उतार सकती है।
पन्द्रह कहानी संग्रह की पूर्णता के बाद यह सोलहवां कहानी संग्रह है। स्त्री-विमर्श को प्रधानता देते हुए सामाजिक मूल्यों को भी उकेरना का प्रयास करता रहा हूँ। पाठकों ने प्यार दिया, कहानियों के साथ एकाकार किया तो और कहानियों का सृजन होता चला गया।

About Somvar 7 August

जीवन का अपना गणित है और इस गणित से निकलने वाला गुणनफल कहानी है। मैं तो कम से कम इसे ऐसे ही देखता हूँ। कभी होती थीं काल्पनिक कहानियां तब शायद यह सच नहीं होता पर अब तो कहानियों का रूप परिवर्तित हो चुका है, अब कहानियां जीवतंता लिए होती है। कहानियो में दर्द होता है. कहानियों में आनंद होता है और कहानियों में वह सच भी होता है जो आमतौर पर कह नहीं पाते। कहानियां केवल मनोरंजन के लिए नहीं होती। वर्तमान में खड़े होकर विगत में झांकना और वर्तमान में खड़े रहकर भविष्य की ओर ताकना दोनों कार्य सहज तो नहीं हो सकते। हमारे ही समाज के किसी पात्र को लेकर उसकी आगत और विगत का चित्रण करना भी सरल नहीं हो सकता पर जब यह कठिन कार्य किया ही जाता है तब ही तो कहानी का एक स्वरूप उभर आता है। जीवन के उतार चढ़ाव को शब्द चाहिए, जीवन के अनकहे पहलू को शब्द चाहिए शब्द तो मिल गए तो एक पूरी कहानी सजीव हो उठती है। पाठक को सजीवता पसंद आने लगी है। कल्पनाओं की दुनिया से बाहर हो चुका है पाठक । मुंशी प्रेमचंद ने जब कहानियां सृजित कीं, उपन्यास सृजित किए और बता दिया कि हमारे नायक या नायिका के लिए कल्पनाओं की सैर करना कतई जरूरी नहीं है। हमारा समाज ही इतना बड़ा है, हमारा जीवन ही कई घटनाओं का मूक दर्शक है तब कल्पनाओं में जीने की क्या जरूरत है। हर एक के जीवन में कई-कई कहानियों भरी होती हैं सुख की भी और दुख की भी इनका ही इन्द्रधनुषीय रूप उकेरना है सच मानो की एक अच्छी कहानी पाठक के आंखों से पानी भी बहा सकती है और उसके मुख पर प्रसन्नता के भाव भी उतार सकती है।
पन्द्रह कहानी संग्रह की पूर्णता के बाद यह सोलहवां कहानी संग्रह है। स्त्री-विमर्श को प्रधानता देते हुए सामाजिक मूल्यों को भी उकेरना का प्रयास करता रहा हूँ। पाठकों ने प्यार दिया, कहानियों के साथ एकाकार किया तो और कहानियों का सृजन होता चला गया।