logo

Get Latest Updates

Stay updated with our instant notification.

logo
logo
account_circle Login
vakt ki raah वक्त की राह
vakt ki raah वक्त की राह

vakt ki raah वक्त की राह

By: ANURADHA PRAKASHAN (??????? ??????? ?????? )
112.00

Single Issue

112.00

Single Issue

About this issue

मैं अपने आप को किसी साहित्यिक विवेक से कोई कवि या लेखक नहीं मानता।
लेकिन कविता किसी न किसी रूप में हर वक़्त मेरे जीवन का एक अभिन्न अंग रही है।
शायद इसी कारण जो कुछ भी थोडा बहुत लिख पाया हूँ वो कहीं न कहीं निजी जीवन के अनुभव और एहसास से जुड़ा है।
लेखन चाहे अच्छे साहित्य की कसौटी पर खरा ना बैठे लेकिन चेष्टा यही रही है कि जो कुछ भी प्रस्तुत हो, वो सच्चा हो, जीवंत हो।
मैं एक मध्यम वर्गीय, साहित्यिक बोध वाले परिवार की सबसे छोटी सन्तान, पेशे से इंजीनियर भी बना, अच्छा ओहदा भी प्राप्त हुआ, लेकिन अन्दर का कवि कभी शान्त न हो पाया।

इस संग्रह में अगर आपको कोई त्रुटि नजर आए अथवा कुछ अंश कहीं और से लिया प्रतीत हो तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। जहाँ तक संभव हो सका आभार प्रकट करने का प्रयास अवश्य किया गया है।
हूँ। साहिर लुधियानवी कि इन पंक्तियों द्वारा यह संग्रह आपके हवाले करता
दुनिया से तजुरबाते हवादिस कि शक्ल में जो कुछ भी मिला है उसे लौटा रहा हूँ मैं।
आशा करता हूँ कि आपको इस प्रस्तुति में कहीं कुछ पसंद आये, और अगर आपको कहीं कुछ सोचने पर भी मजबूर करे तो मैं अपने इस प्रयास को सफल समझेंगा।

About vakt ki raah वक्त की राह

मैं अपने आप को किसी साहित्यिक विवेक से कोई कवि या लेखक नहीं मानता।
लेकिन कविता किसी न किसी रूप में हर वक़्त मेरे जीवन का एक अभिन्न अंग रही है।
शायद इसी कारण जो कुछ भी थोडा बहुत लिख पाया हूँ वो कहीं न कहीं निजी जीवन के अनुभव और एहसास से जुड़ा है।
लेखन चाहे अच्छे साहित्य की कसौटी पर खरा ना बैठे लेकिन चेष्टा यही रही है कि जो कुछ भी प्रस्तुत हो, वो सच्चा हो, जीवंत हो।
मैं एक मध्यम वर्गीय, साहित्यिक बोध वाले परिवार की सबसे छोटी सन्तान, पेशे से इंजीनियर भी बना, अच्छा ओहदा भी प्राप्त हुआ, लेकिन अन्दर का कवि कभी शान्त न हो पाया।

इस संग्रह में अगर आपको कोई त्रुटि नजर आए अथवा कुछ अंश कहीं और से लिया प्रतीत हो तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। जहाँ तक संभव हो सका आभार प्रकट करने का प्रयास अवश्य किया गया है।
हूँ। साहिर लुधियानवी कि इन पंक्तियों द्वारा यह संग्रह आपके हवाले करता
दुनिया से तजुरबाते हवादिस कि शक्ल में जो कुछ भी मिला है उसे लौटा रहा हूँ मैं।
आशा करता हूँ कि आपको इस प्रस्तुति में कहीं कुछ पसंद आये, और अगर आपको कहीं कुछ सोचने पर भी मजबूर करे तो मैं अपने इस प्रयास को सफल समझेंगा।