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Roobaru Duniya
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By: Roobaru Duniya
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  • Sep 2014 - The Bikerni
  • Price : 10.00
  • Roobaru Duniya
  • Issues 10
  • Language - Hindi
  • Published monthly

About this issue

शायद 2008 की बात है, मैं और मेरी छोटी बहिन दिवाली की छुट्टियों के लिए घर आये थे, जिस दिन मेरी छोटी बहिन को वापस जाना था उस दिन पापा घर पर नहीं थे, बहिन की ट्रेन रात को 3:30 बजे थी, इतनी रात को कोई ऑटो कैसे मिलता और मिलता भी तो उसमे बहिन को अकेले कैसे भेजते, यही सोचकर घर में रखी पापा की बाइक से माँ ने हम दोनों को स्टेशन भेज दिया। ट्रेन लेट थी इसलिए हम घर से कुछ 3:45 पर निकले, माँ ने हिदायत दी कि संभल कर जाना, और वापसी में तुम उजाला होने पर ही घर लौटना, चाहे बहिन की ट्रेन जल्दी क्यूँ न चली जाए। उस दिन की सिचुएशन को याद करती हूँ तो सोचती हूँ कि अगर हम दोनों बहिनों को बाइक चलानी नहीं आती होती तो इस तरह की छोटी मगर मोटी मानी जाने वाली परिस्थितियों से हम शायद कभी नहीं निपटते या यूँ कहें कि उनसे बचने की कोशिश करते। यहाँ सिर्फ बाइक चलाना ही फोकस नहीं बल्कि लड़कियों को इतना मजबूत बनाना कि वे कैसी भी सिचुएशन से निपट सकें, यह मुझे मेरे परिवार से ही सीखने को मिला। पापा को जब भी हमसे कोई काम कराना होता, वो हमें लालच देते कि ये काम करेगी तो मोटर-साइकिल चलवाऊंगा। बीते साल ही बात है, एक पहाड़ के बहुत ही ऊबड़-खाबड़ से रास्ते पर मैं मोटर-साइकिल पर बहिन के पीछे बैठी थी, और साथ ही एक दूसरी बाइक पर पापा साथ चल रहे थे। मुझे ख़ुशी होती है ये सोचकर कि उस दिन उस पहाड़ वाले मंदिर पर घूमने जाने के लिए पापा ने ये नहीं पूछा कि एक बाइक पर 3 कैसे जायेंगे, या किसी और को पूछता हूँ साथ चलने को, बल्कि ये कहा कि किसी की एक और मोटर-साइकिल माँग लेते हैं फिर एक पर तुम दोनों बहिनें और एक पर मैं। लेकिन हिन्दुस्तान की कितनी ऐसी बेटियाँ हैं जो इतनी भाग्यशाली होती हैं जिन्हें ऐसा माहौल मिलता है कि उनके पिता उन्हें मोटर-साइकिल चलाना सिखाएँ ? अगर हिसाब लगाने बैठेंगे तो आँकड़े बहुत कम दिखेंगे । असल में यहाँ दोष किसी पिता का नहीं बल्कि उस मढ़ी हुई सोच का है जो ये कहती है कि लड़कियाँ स्कूटी चलाती हैं मोटर-साइकिल नहीं। इसी सोच को दरकिनार कर “द बाइकरनी” नामक एक एसोसिएशन ने भारत में महिला बाइकर्स को ढूँढना शुरू किया, उन लड़कियाँ को ढूँढा जो बाइक चलाना जानती हैं या सीखना चाहती हैं, जिनके लिए बाइक पर एडवेंचर महज़ टीवी में दिखाया जाने वाला एक सपना नहीं बल्कि एक हकीक़त है। हमारे इस अंक में हम आपको मिलवा रहे हैं इसी एसोसिएशन से और इसकी संस्थापक के साथ-साथ दो बाइकरनियों से। इसके अलावा एक और ख़ास लेख इस अंक में हैं, जिनमे से पहला है कार्टूनिस्ट प्राण के जीवन पर आधारित एक लेख जो उनके एक विशेष इंटरव्यू पर आधारित है। साथ ही इस अंक से शुरू हो रहा है एक और नया कॉलम – फिल्मास्टिक, जिसमे आप पढेंगे फ़िल्मी दुनिया को एक नई नज़र से। बाकी हमेशा की तरह देश और समाज से जुड़ी कई सारी बातों पर चर्चा जो होनी बहुत ज़रूरी है। तो फिर बढ़िये और पढ़िए .. और लिख भेजिए आपकी प्रतिक्रिया हमारे इस अंक के बारे में। मुझे इंतज़ार रहेगा ।

About Roobaru Duniya

यह पत्रिका भारत के समाचारपत्रों के पंजीयन कार्यालय (The Registrar of Newspapers for India, Govt of India) द्वारा पंजीयत है जिसका पंजीयन नंबर MPHIN/2012/45819 है। 'रूबरू' उर्दू भाषा का एक ऐसा शब्द जिससे हिंदी में कई शब्द जुड़े हैं, जैसे 'जानना', 'अवगत होना', 'पहचानना', 'अहसास होना' आदि, मौखिक रूप से इसका मतलब है कि अपने आस पास की चीजों को जानना जिनके बारे में हमे या तो पता नहीं होता, और पता होता भी है तो कुछ पूरी-अधूरी सी जानकारी के साथ | इसलिए रूबरू दुनिया का ख़याल हमारे ज़ेहन में आया क्योंकि हम एक ऐसी पत्रिका लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं जो फिल्मजगत, राजनीति या खेल से हटकर असल भारत और अपने भारत से हमे रूबरू करा सके | जो युवाओं के मनोरंजन के साथ-साथ बुजुर्गों का ज्ञान भी बाटें, जो महिलाओं की महत्ता के साथ-साथ पुरुषों का सम्मान भी स्वीकारे, जो बच्चों को सीख दे और बड़ों को नए ज़माने को अपनाने के तरीक बताये, जो धर्म जाती व परम्पराओं के साथ-साथ विज्ञान की ऊँचाइयों से अवगत कराये और विज्ञान किस हद तक हमारी अपनी भारतीय संस्कृति से जुड़ा है ये भी बताये, जो छोटे से अनोखे गावों की कहानियां सुनाये और जो तेज़ी से बदलते शहरों की रफ़्तार बताये, जो शर्म हया से लेकर रोमांस महसूस कराये और जो हमें अपनी आधुनिक भारतीय संस्कृति से मिलाये | सिर्फ इतना ही नहीं इस मासिक पत्रिका के मुख्य तीन उद्देश्य "युवाओं को हिंदी और समाज से जोड़े रखना, समाज में व्याप्त बुराइयों को मिटाने के लिए जागरूकता फैलाने और उन्हें दूर करने में युवाओं की भूमिका को बनाये रखना, और नए लेखकों को एक प्लेटफार्म देना" के अलावा हिंदी साहित्य को संग्रहित व् सुरक्षित करने के साथ साथ एक ऊँचाई देना भी है | इस पत्रिका की मुख्य संपादक व प्रकाशक अंकिता जैन हैं |