जब मैं इस पुस्तक के प्रकाशन के क्रम में अपनी बात कहने बैठा हूँ तो आप सुहृद पाठकों से मैं यह कहना चाहता हूँ कि दैवयोग से मैं उस पवित्र धरती पर उपस्थित हूँ जिस पवित्र धरती पर आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा का जन्म हुआ, जहाँ की पवित्र मिट्टी में बचपन में वे खेले कूदे, जहाँ के प्राथमिक विद्यालय में उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की जो अपनी स्थापना के सौ वर्ष 2023 में मना चुका है, जहाँ के खेतों से आचार्य ओझा जी बातचीत किया करते थे और जहाँ के संस्कार और संस्कृति को वे अपने में समेटे हुए थे, जहाँ के पास के गाँव डुमरी के के.पी उच्च विद्यालय से हाई स्कूल प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया भीषण गमी में भी कई मील (करीब 10 मील दोनों तरफ से) पैदल चलकर और बारिश के मौसम में पूरे ताल को तैरकर (करीब 6 मील दोनों तरफ से)। (उस समय गंगा नदी पर बाँध नहीं होने के कारण पूरा ताल पानी से भर जाता था।) वह पवित्र धरती है बड़का सिंहनपुरा गाँव जो बिहार के बक्सर जिले में स्थित है, और बक्सर एक ऐतिहासिक और पौराणिक भूमि है।
तो आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा की प्रारम्भिक शिक्षा बहुत ही कठिन व विपरीत परिस्थितियों में हुई। बहुत कष्ट सहकर, बड़ी परेशानियों का सामना कर। इसीलिए आचार्य ओझा की रचनाओं में मिट्टी की सुगंध है, प्रकृति प्रेम है, दार्शनिक चिंतन है, आध्यात्मिक विवेचन है, मानवता का समावेशन है, दया-करुणा-सहृदयता-सदाशयता-संवेदना के साथ साथ सनातनी संस्कार का लेपन है।