Geeta AmritVani
Geeta AmritVani

Geeta AmritVani

This is an e-magazine. Download App & Read offline on any device.

Preview

श्रीमद्भगवद्गीता पर अनेकों टीकाएं और भाष्य हिन्दी भाषा के अतिरिक्त अन्य भाषाओं में उपलब्ध हैं। यूं तो अन्य धार्मिक ग्रंथों
के अनुवाद अनेक भाषाओं में हुए हैं, परन्तु गीता का अनुवाद सबसे अधिक भाषाओं में हुआ है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि
श्रीमद्भगवद्गीता जाति, धर्म तथा क्षेत्र से उठकर समस्त मानव - जाति के कल्याण के लिए अत्यन्त उपयोगी है। 'गीता अमृत
वाणी' नामक पुस्तक जिसके लेखक आचार्य अविनाश कृष्ण (लज्जा राम मनोज) जो गीतानुरागी हैं, ने गीता को पूर्णतः कंठस्थ किया, तब इस पर लिखा है। लेखक ने मूल श्लोक के बाद इसका शब्दार्थ और अन्वय रूप से व्याख्या लिखी है। लेखक मूलतः विज्ञान के विद्यार्थी रहे हैं। शिक्षाप्राप्ति पश्चात उन्होंने उत्तर प्रदेश प्रादेशिक सिविल सर्विस से चयनित होकर विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्य किया। सेवा निवृत्त होने के बाद उन्होंने संस्कृत विषय में परास्नातक (एम.ए.) की उपाधि प्राप्त की। तदुपरान्त गीता जैसे ग्रंथ पर लिखने का कार्य आरम्भ किया। यह उनकी गीता के प्रति समर्पण का भाव दर्शाता है। गीता पर लिखने से पूर्व उसकी पृष्ठभूमि दी है कि भगवान्  कृष्ण को गीता का ज्ञान अर्जुन को देने की क्यों आवश्यकता पड़ी ?
मनुष्य के उद्धार के लिए तीन मार्ग हैं- ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग। इन तीनों का गंतव्य (ड्यस्टिनेशन) एक ही है। गीता में इसे बताया गया है जिसका लेखक ने विस्तार से वर्णन किया है।