Jindgi aur Jindgi
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सुनीति कवांत्रा जी के नवीनतम काव्य-संग्रह 'ज़िन्दगी और ज़िन्दगी' के प्रकाशन पर अनन्त शुभकामनाएँ देते हुए प्रभु से कामना करता हूँ कि आपका यह काव्य-संग्रह पाठकों को पसंद आए। ज़िन्दगी के सूक्ष्मतम भावों को सुनीति जी ने अपनी कविताओं में जिस सहजता एवं पारखी नजर से स्पर्श किया है, पाठकों की मानसिकता को वे भाव छू पायेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है।
काव्य-पुस्तक का शीर्षक 'ज़िन्दगी और ज़िन्दगी' सामान्य लग सकता है परन्तु कवयित्री के हृदय ने ज़िन्दगी के सभी पहलुओं को निकटता से परख कर उनके रहस्यों को खोलते हुए इसे गूढ़ बना दिया है। एक ज़िन्दगी वह है जो हमें मिली है और दूसरी वह जिसकी हमें भविष्य में चाहत है। दोनों के कई-कई पहलू और कई-कई रूप हैं जिन्हें पारिवारिक, सामाजिक, राजनैतिक, देश-भक्ति, प्रकृति,
अध्यात्म तथा मानवता आदि विषयों के माध्यम से अपनी कविताओं में सुनीति जी ने दर्शाया है। अपनी रचनाओं में वे एक सही ज़िन्दगी की पहचान भी कराती हुई दिखती हैं। 'वेदन एवं प्रतिवेदन' कविता में जहाँ पारिवारिक जीवन की झाँकी है वहीं 'अहो भाग्य मैंने बेटी पाई' कविता में बेटियों का गौरव स्थापित किया गया है। हीन समझे जाने वाले समाज के प्रमुख अंग श्रमिक की महत्ता कवयित्री इस प्रकार स्थापित करती हैं 'कर्मयोगी है वह, हो सकता हीन नहीं।' राजनैतिक गलियारों में झाँकते हुए 'मंत्री' के प्रति आपने अपने भाव इस प्रकार व्यक्त किए हैं 'तुम्हारे दिल में देश के लिए / नहीं है कोई दर्द / उसमें हैं चाहतें-लालसाएं।' देश-भक्ति कवयित्री के लिए सर्वोपरि है। बुझी हुई देश-प्रेम की भावना को कवयित्री इस प्रकार जगाती हैं 'क्या देश से नहीं कोई नाता तुम्हारा ? / क्यों बुझ गया देश-प्रेम का अंगारा?' पल-पल होते परिवर्तन के बीच मानवता को अक्षुण्ण बनाए रखने की आवश्यकता कवयित्री सुनीति जी ने अपनी कविता 'कभी न बदले मानवता हमारी' में दर्शायी है।
इस प्रकार सुनीति जी की कविताएँ कोई न कोई प्रेरणा या संदेश देकर ज़िन्दगी को श्रेय मार्ग पर अग्रसर करती हैं। इसी भावना के साथ आप आगे भी साहित्य-सृजन करती रहें। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।