पुरुषसूक्त (PURUSH SUKTA)
पुरुषसूक्त (PURUSH SUKTA)

पुरुषसूक्त (PURUSH SUKTA)

This is an e-magazine. Download App & Read offline on any device.

Preview

पुरुषसूक्त को पढ़ें, समझें जानें, क्या पुरुषसूक्त में किसी जाति का अपमान किया गया है? सूक्त क्या होता है :-- स्वामी मृगेंद्र सरस्वती के अनुसार वेद सूक्तम्:--पुरुषसूक्त, रूद्र-सूक्तम्, श्रीसूक्त, पितृ-सूक्त बताये गये हैं I हिन्दु धर्म में चार वेदों का बहुत महत्त्व है, क्रमशः चार वेद – ॠग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद हैं। इन चारों वेदों में ही हिन्दु धर्म के विभिन्न देवताओं के अनेकों सूक्त है। वैदिक-मन्त्रों के समूह को कहते है। जिस ॠषि ने भी जिस देवता की मन्त्रों के द्वारा स्तुति की अर्थात् जिस ॠषि को समाधि की अवस्था में जिस भी देवता के विभिन मंत्र दिखलाई दिये या प्राप्त हुऐ उस ॠषि ने उन मंत्रों के द्वारा उस-उस देवता की स्तुति की और वह-वह मंत्र उस-उस देवता के सूक्त कहलाये । प्रचीन ॠषियों ने वेदों में से आम व्यक्ति के भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति हेतु विभिन्न सूक्तों को छाँट कर या अलग करके पुराणों में एवं शास्त्रों में लिखा। सभी सूक्त वेदों में से लिये गये हैं, इसलिये इन सूक्तों को किसी भी धर्म – जाति का व्यक्ति चाहे व ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ही क्यों न हो, सभी इन सूक्तों का पाठ कर सकते हैं । इन सूक्तों का पाठ करने के लिऐ गुरू-मुखी होने की भी आवश्यकता नहीं है। इन सूक्तों का पाठ जिसने गुरू-धारण किया है वह भी कर सकता है और जिसने गुरू-धारण नहीं किया वह भी कर सकता है, क्योंकि सभी धर्मो के प्रमुख ग्रन्थ- ‘चार वेद’, ‘गुरू ग्रन्थ साहब’, ‘कुरान-शरीफ’, ‘बाईबल’ आदि ग्रन्थ पूरी तरह से हर व्यक्ति और हर जाति के व्यक्ति पढ़ सकते है । इनके उपर किसी भी तरह की कोई भी पाबंदी नहीं है। इसके विपरीत जितने भी तान्त्रिक ग्रन्थ हैं वह कीलित् (बन्धे-हुऐ) ग्रन्थ हैं । उनके लिऐ योग्य गुरू कि आवश्यकता होती है । उदाहरण के तौर पर दुर्गा-सप्तशती भगवान शिव के द्वारा कीलित् है । इसलिये इसको पढ़ने से पहले गुरू कि आज्ञा अर्थात् गुरू-मुखी होना अनिवार्य है । आज का आम साधक(व्यक्ति) अधिकतर किताबों में से पढ़ कर या इधर-उधर से ले कर तान्त्रिक मंत्रों का जाप करता है। जाप के बाद फायदा न होने पर या तो मंत्र को या उसके बताने वाले को या पंड़ितों एवं पुराहितों को गलत समझता है। इस का एक कारण यह भी है, कि आजकल के गुरू अधिकतर अपने शिष्यों को तान्त्रिक मंत्र प्रदान तो करते है, किन्तु तान्त्रिक मन्त्र के साथ उसका पूरा विधान साधक को नहीं बतलाते। दूसरा कारण यह है कि अधिकतर गुरू या शिष्य अपने ‘इष्ट’ का ख्याल नहीं रखते अर्थात् प्रत्येक गुरू को अपनी गुरू परम्परा में मिला हुआ मन्त्र पहले स्वयं सिद्ध करना चाहिये और फिर वही मंत्र अपने आने वाले शिष्यों को देना चाहिये। शिष्यों को भी अपने ‘इष्ट’ को ध्यान में रख कर ऐसे गुरू की तलाश करनी चाहिये जो कि आपके ‘इष्ट’ के अनुसार आपको दिक्षा दे सके। किन्तु वेदों के मंत्रों एवं सूक्तों का जाप करने में किसी भी प्रकार का कोई नियम नहीं है, सिर्फ शारीरिक स्वच्छता के अलावा इन्हे कोई भी व्यक्ति संध्या के समय पढ़ कर सम्पूर्ण रूप से भौतिक एवं अध्यात्मिक लाभ उठा सकता है । पाप नाश एवं भगवद् कृपा प्राप्ति हेतु पुरूष सूक्त – प्रत्येक व्यक्ति अपने जन्म के समय पाप और पुण्य दोनों को अपने साथ ले कर पैदा होता है । पाप और पुण्य के अनुसार ही व्यक्ति को घर-परिवार, जाति, धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है । जिस व्यक्ति के पुण्य ज्यादा होगें वह उच्च-कुल में जन्म लेकर सभी सुखों का उपभोग करता है, किन्तु अधिक पाप वाला व्यक्ति नीच-कुल में जन्म लेकर तमाम उम्र दुखों एवं गरीबी में बिता देता है । दान-पुण्य करते वक्त जिस व्यक्ति की जैसी भावना होती है, उसका भी बहुत महत्त्व है । यदि कोई व्यक्ति परमात्मा कि कृपा प्राप्ति हेतु दान-पुण्य करता है और उससे यदि अनजाने में कोई पाप हो जाऐं तो अगले जन्म में नीच-कुल में जन्म लेकर भी वह पुण्य-आत्मा अपने सदगुणों का त्याग नहीं करता । पूर्व जन्म के तमाम पापों के समाप्त हुऐ बिना पुण्य का फल नहीं मिलता। प्रत्येक व्यक्ति को पहले पाप और उस के पश्चात पुण्यों का भोग-भोगना होता है, किन्तु कई बार ऐसा देखने में आता है । कि प्रत्येक व्यक्ति को पहले पाप और उस के पश्चात पुण्यों का भोग-भोगना होता है, किन्तु कई बार देखने में आता है कि व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन सुखों में बीतता है, किन्तु बुढ़ापे में दुखों कि भरमार होती है, इसका कारण पूर्व जन्म के पाप नहीं अपितु इसी जन्म के पाप होते है । जो व्यक्ति इस जन्म में किये हुये पापों को आयु कम होने कि वजह से बुढ़ापे में नहीं भोग पाता, वहीं बचे हुये पाप व्यक्ति को अगले जन्म की प्रारम्भ अवस्था अर्थात् गर्भ, बचपन एवं जवानी में भोगने पड़तेहै। पुराणों के अन्दर सम्पूर्ण पापों से छुटकारा पाने का श्रेष्ठतम उपाय “पुरूष-सुक्त” है । जो व्यक्ति प्रतिदिन 1 बार ‘पुरूष-सूक्त’ का पाठ करता है, वह अपने इस जन्म में किये हुऐ प्रतिदिन के पापों से छुटकारा पा लेता है, साथ ही जो व्यक्ति प्रतिदिन पुरूष-सूक्त के 5 पाठ करता है, वह इस जन्म के पापों के साथ-साथ पूर्व-जन्म के भी तमाम पापों से छुटकारा पा लेता है ।

More books From ANURADHA PRAKASHAN (??????? ??????? ?????? )