O Majhi Re
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मन है तरंग भरी, और चट्टानों सा स्वाभिमान भरा।
उमंगों का पतंग उड़ाऊं, नील गगन में मैं सदा ..!!
21 वसंत की रंगीनियों में खुद को नहला चुका मेरा मन आज भी बालपन में हिलौरे लेता है... अब तक के सफर में बहुत सारी ऐसी यादें हैं जिसे दिल में सहेज कर रखी हूँ, जिसमें कुछ हंसी खुशी बिताए पल तो कुछ दर्द से भरे लम्हे जिसे शायद ही कभी भुलाया जा सकता है। दुनिया के ताने -बाने को सुनकर, समाज की कई घटनाओं को देखकर शब्द मन में उबाल मारने लगे और धीरे -धीरे वो शब्द कविता और उन कविताओं का संग्रह एक किताब 'ओ माझी रे' का रुप ले लिया। मैं लिखती हूँ ताकि खुद का बोझ हलका हो सके, जो दर्द तकलीफें और खुशियाँ लोगों से मिला है उससे न ज्यादा उत्साहित हूँ और न ही कुंठित हूँ, बस एक माझी हूँ अपने पथ पर स्वाभिमान के साथ चलती रहूंगी l